रविवार, 21 सितंबर 2008

मा और मैं ( The Best Of Mine)

मेरी बूढी हो चुकी मा
हड्डियों का एक ढाँचा भर
जिसमे, आँखें अब कही नहीं

सिर्फ लटकती हुई खालों
और सूखी चमड़ी की झुर्रीयो से
झाँकता हुआ अतीत है, जिसमे
वेदना, संघर्षों, शोक और विषाद के
निरीह, बेबस पन्ने फड़फड़ाते है

यदाकदा, जब मैं
दुनियावी नाकामी से थक कर
उसके आँचल में सर छिपाता हू
तो स्वाभाविक ही
आँसूओ की दो गर्म बूदे
वर्जनाओ को तोड़ती हुई
उसके गालों से होकर
मेरे गालों को चूमती है.

जीवन का पाठ पढ़ाती हुई
उसकी जिन्दगी मुझे सिखाती है-
मुश्किलों से हारना कब जिन्दगी है
इसे तो हर हाल में हमें जीतनी है .

वक़्त

वक़्त बीतता है, बीतता जाता है
और बीत जाता है बहुत कुछ साथ में
घटना, कहानी या इतिहास
कुछ नहीं रह जाता आदमी के हाथ में

दिन, रात, महीने, साल
गर्मी-सर्दी या बादल-बरसात
जन्म, मृत्यु या ज़िन्दगी की बात
सब खत्म हो जाता है आदमी के बाद में

पुरानी फिल्म की रील में धुन्धले धब्बे सा वक़्त
सच्चाई है तुम्हारी भी हमारी भी
भूख, दर्द, वासना, नाम, स्मृति या खालीपन
सब बुझ जाता है अन्धेरी रात में..........

मैं तड़पता रहा........

तुम में कुछ मुस्कराता हुआ सा लिपटा रहा
और मैं तपती रेत पर चलता रहा
आँखों में इक सपने की अंतिम आहट लिये
मैं चलता रहा और तड़पता रहा


न जाने कौन सी है वह दुनिया जहाँ
रात को भी दिन का पता होता है
इस शहर के दो लमहों के बीच
मैं भटकता रहा और तड़पता रहा ....


मिलने और ना मिलने के बीच
अट्की हुई हमारी जिन्दगी में
न जाने कितनी
सदियों का कारवाँ गुजरता रहा .............

तुम

एक सपने की हकीकत
तुम बनके जो आई
बदला रुख हवाओं ने
फिर, ज़िन्दगी ने ली अँगड़ाई

चाहत है,
पल छिन तुझको देखू मैं
माथा चूमू, गले लगाऊ
हाथ पकड़ के साथ चलू
अरमानों के दीप जलाऊ

हलचल सी होती है दिल में
जब-जब तुझको देखू मैं
तेरे बिन दुनिया के मेले में
मैं खुद को तन्हा पाऊ.

यूँ ही,

उदास रात का
अंतिम लमहा
उलझा हुआ है मुझ में
जाने, क्यों अब भी यूँ ही,

तुम्हारे तसव्वुर में खोई
इन आंखों के प्याले
भर आये है ऐसे,
कि वक़्त-बेवक्त
छलक जाते है यूँ ही,


खो जाती है, मिल के
मिलके मिलती नहीं
गुज़रती जाती है कुछ ऐसे
ये नाकाम ज़िन्दगी यूँ ही....

रात

रंग सारे बेरंगे इतने
ख़्वाबों की परछाई में
यूँ रात तड़पती प्यासी
तेरे आँचल की गहराई में

तुझ तक कैसे पहुँचू मैं
जीना कैसा तेरे बिन
सुबह प्यासी रातें प्यासी
प्यास है हर बीनाई में

इस जीवन का रंग ढंग सारा
गुमसुम-गुमसुम रहता है
सहमी नींद के सपनों में चुप
बीते रात जगाई में ....